Saturday, June 20, 2009

लिजवाने की लडाई

टेक :-हरियाणे मै याद रखेंगे लिजवाने की होली न

बहुत घने छोरा नै मारे सोलह काटे भोली नै .................


लिजवाने की परस मै आकै दो गुर्गे माल उगाहन लगे

भुंडे बोले गाली देकै आपना रो़ब जमान लगे

भूरा और निघाहिया दोनु उठ सभा तै जाण

लगे तुंरत दुश्मनी छोड़ देई और आपस मै बतलान लगे

अंग्रेजा न सबक सिखावै नू कट्टी कर लो टोली नै ..............


दोनु गुर्गे बच ना पावै तुंरत फैसला पास करा

मारो-मारो होण लागी बचने का ढंग तलाश करा

तहसीलदार कवर सैन नै भाजन का प्रयास करा

पिछली खिड़की भेडी भोली न तुंरत दुष्ट का नाश करा

धन -धन साईं उन वीरा नै धन लिजवाने की पोली नै .............


अंग्रेजा नै फोज भेज दी महा संग्राम छड्या

जेली और फरसे लेकै नै तोप्या आगै गाम अडा

मच -मच मच-मच फरसे चले दुश्मन देखे खड्या खड्या

जिसका भी जितना जाथर था घाट लड्या कोई भाद लड्या

तोप्या तै भी नई डरे वे के थापे थे गोली न ...........................


भाई मार दिया भोली का भारग्या रोस गात के मै

रणचंडी न पगड़ी बांदी बदल्या भेष श्यात कै मै

रण मै कूद पड़ी थी भोली फरसा लिया हाथ के मै

सोलह के सिर तार लिए और घने साथ के मै

जयप्रकाश वीरभूमि धन हरियाणा तेरी झोली नै........................


हरियाणा मै आजादी से पहले जींद एक रियासत थी जिसकी स्थापना राजा गजपत सिंह ने की थी आज से १८० साल पहले माल (लगान ) वसूलने के लिए इसी रियासत के गुर्गे किसानो को बहुत तंग करते थे लिजवाना गावं मेंमाल वसूलने के गये तहसीलदार और उसके गुर्गो को गावं वालो को गाली दे दी जिस कारण गावं के सभी लोग एक हो गये तथा रियासत के गुर्गो को सबक सिखाया जिससे नाराज होकर राजा न अंग्रेजी सेना के साथ मिलकर गावं पर तोपों से हमला कर दिया जिसका गावं वालो ने मिलकर मुकाबला किया इस मुकाबले का नेत्रत्व भूरा और निघाहिया नाम के नम्बरदारों ने किया इस लडाई में अंग्रेजो और राजा को एक वीर नारी ने भी टक्कर दी इस वीर नारी का नाम था "भोली" जो लिजवाने गावं की बेटी थी गावं की इस वीर बेटी ने सोहला -सोहला सिपाहियों को मारा

इसी गावं की वीरगाथा को वीररस की कविता में पिरोया है हरयाणवी के कवि जयप्रकाश ने

Sunday, May 17, 2009

हरियाणा का लोक नाट्य सांग (४)

प० लखमी चन्द के समय में सांग कला के रंग मंचीय पहलु में भी परिवर्तन आया वाद्यायंत्रो में हारमोनियम शामिल हो गया मंच पर छ : तख्त होने लगे ,शामियाना लगने लगा तख्तो पर जाजम और उस पर चांदनी (चादर )बिछाई जाने लगी नायक के बैठने के लिए कुर्सी का प्रयोग होने लगा सांग में काव्य या रागनी में सवाल जवाब आते है और बीच-बीच में सूत्रधार संवाद कहता है
हरियाणवी सांग सामाजिक धरोहर है इस हरियाणवी लोक नाट्य संगीत न्रत्य संवाद और अभिनय की अनिवार्यता है इन सांगो में रंग मंच का कोई आडम्बर नही होता ,प्रदर्शन खुले में होता है और सांग रात -रात भर चलते है सांगो ने हरियाणा के जन -मानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है सांगो का लोगो के मन पर असर होता था सांगो की लोकपिर्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है की हरियाणा में अनेक स्थानों में स्कूल,मन्दिर, कुए ,धर्मशाला भी सांगो द्वारा इकठ्टे किए गये चंदे से बनाये गये है
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Sunday, March 29, 2009

हरियाणा का लोक नाट्य ....सांग(३)

सांग में अनेक बदलाव भी दीपचंद युग में आए मंच के उपकरणों में भी कई परिवर्तन हुए पहले सांगी खड़े -खड़े काम करते थे लेकिन अब मूढा व् चोंकी लेकर बठने लगे नायक मूढे पर बैठता जबकि बाकि कलाकार निचे बैठते स्त्री का अभिनय आदमी स्त्री वेश में करता साजो में एकतारे का स्थान सारंगी ने ले लिया तथा नगाडे का भी प्रयोग होने लगा दीपचंद युग में सांग अपने चरमोत्कर्ष पर था लेकिन अगर हम इस कला के एक सांगी का जीकर न करे तो यह सांग की गाथा अधूरी मानी जायगी ये थे प्रसिद्ध सांगी प० लखमी चंद जिन्होंने सांग को एक नई दिशा प्रदान की जिनके बनाये आज भी सर्वाधिक प्रचलित है प० लखमी चन्द 'मान सिंह 'बसोदी वाले से बहुत प्रभावित थे जो भजन गाते थे और अंधे थे प० लखमी चंद मान सिंह को ही अपना गुरु मानते थे इसी लिए उनके बनाये सांगो में भी गुरु भक्ति झलकती है वे सांग के आरम्भ में कहते है ...
'मन्य सुमर लिए जगदीश
मानसिंह सतगुरु मिले
गहूँ चरण नवा शीश
प० लखमी चंद ने सांग को एक नया रूप प्रदान किया वे अदभुत कला के प्रतिभा संपन सांगी थे उनके सांगो में प्रेम और श्रंगार का योग देखने को मिलता है
नोटंकी सांग में ............
"म आया था आडे ठरण खातर,
मानस मारनी बेरण खातर ,
नोटंकी के पहरण खातर हार बना बडे जोर का "

Wednesday, March 11, 2009

हरियाणा का लोक नाट्य सांग (२)

सन १८८४-८५ में सर आर .सी .टेम्पल की "दी लीजेंड्स आफ पंजाब "नामक किताब में बंशीलाल द्वारा किए जा रहे सांग का प्रसंग आया है यह सांग गोपी चन्द के किस्से पर
अम्बाला जिले में हो रहा था
'करपा करो जगदीश ,मात मेरी कंठ में बासा
छन्द ज्ञान शुरू करो आनके देख लोग तमाशा
गोपी चन्द का सांग कहना की दिल को लगरी आशा
कहते बंशीलाल मात मेरी पूर्ण कीजे आशा
हरियाणवी लोक साहित्य के प्रमुख विद्वान "डॉ० शंकर लाल यादव "ने अपने लेख 'हरियाणा
की नाट्य परम्परा 'में सांग बारे में लिखा "आधुनिक हरियाणवी सांग का इतिहास खोजते समय
प० दीपचंद ऐसे कलाकार मिलते है जिन्हें सांग का युग प्रवर्तक खा जा सकता है लेकिन सांग
का चलन इनसे बहुत पहले से ही था पुराने समय में भाट जाती के लोग पीढी दर पीढी गायन
में पारंगत थे गावं के बसने या उजड़ने का सारा ब्यौरा वह अपनी गायन शेली में सुनाते थे
यह भी कहा जा सकता है की भजन मंडलियों से ही सांग का स्वरूप निकला है क्योंकि प ० दीपचंद से पहले रामलाल खटिक और प ० नेतराम प्रसिद्ध साँगी थे परन्तु दोनों आरम्भ में भजनी थे सांग के शुरूआती दोर में एकतारा, ढोलक और खड़ताल ही वाद्य यंत्रो के तोर पर प्रयोग होते थे

हरियाणा का लोक नाट्य सांग(फोक ऑपेरा )

हरियाणा की लोक नाट्य कला के बारे में विचार करते ही हमारा ध्यान सांग पर चला जाता है इस नाट्य कला का इतिहास बहुत जिज्ञासा मूलक है हरियाणा या इसके आसपास के इलाको में सांग की शुरुआत कब हुई इस बारे में कहना मुश्किल है ,परन्तु इतना कहा जा सकता है कि देवताओं में इंदर कि सभा में भी स्वांग (सांग) खेला जाता
था हरियाणा में सांग प्राचीन कल से ही प्रचलित है " नाट्य शास्त्र " ही पंचम वेद कहलाया है
हरियाणा में सम्राट हर्श्वदन के समय लोक नाट्य कला अपने चरम पर था उनके
दरबार में नाटक मण्डली थी १६वि ० शती में हरियाणा में रास लीला और रामलीला
का प्रचार -प्रसार था कुछ समय बाद सांग में अन्य किस्से भी शामिल होने लगे

Tuesday, March 10, 2009

होली का आया त्यौहार

होली और फाग हरियाणा के मस्ती वाले त्यौहार है फाग वाले दिन हर किसी में मस्ती और आन्नद की लहरिया उठती है .................
" काच्ची इमली गदराई सामण मै
बूढी लुगाई मस्ताई सामण मै
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जब साजन ऐ परदेश गए ,मस्ताना फागण क्यू आया
जब सारा फागण बीत गया ,त गर मै साजन क्यू आया
छम छम नाचे सब नरनारी , मै क्यू बेठी दुखा की मारी
मेरे मन मै जब मचा अंधेर ,ते चाँद का चाँदन क्यू आया
इब पिया आया ,जी खिलया ना ,जब जी आया पिया मिला ना
साजन बिन जोबन क्यू आया ,जोबन बिन साजन क्यू आया
मन ते अर्थी बंधी पड्यइ स ,आख्या मै लगी हाय झडी स
जब मेरे मन का फल सुख्याँ, लज्मराया फागन क्यू आया
(हरियाणा का फाग का लोक गीत )

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य .....(भाग ६ )

हरियाणा के सूफी साहित्यकारों में शेख सरफुदीन 'पानीपती 'का अपना एक अलग स्थान
है यह हजरत शेख बू अली कलंदर के लकब से प्रसिद्ध थे शेख जी के पूर्वज फारस से आकर पानीपत में बसे थे इनके घराने की भाषा फारसी थी शेख जी फारसी के साथ -साथ हिन्दी में भी कविताये करते थे अहेख जी सूफी विचारधारा की चिस्ती परम्परा के
कलंदरी शाखा के मुखिया थे इनके अनेक दोहे प्रसिद्ध है दिल्ली के बाह्द्शा गयाशुदीन तुग़लक को इन पर बहुत श्रधा थी
.............
सजन सकोरे जायंगे नेन मरेंगे रोई
विधना ऐसी रेन कर भोर कबहूँ न होई
..........................
मन शुनिदम यारे मन फर्दा खद राहे शताब
या इलाही ता कयामत बा न्यायद आफ़ताब
........................
एक प्रसिद्ध दोहा .........
पो फटतहीं सखी सुनत हो पिय परदेसही गोन
पिय मै हिय मै होड़ है पहले फटी है कोन
शेख सरफुदीन जी का जन्म १२६३ vi० को बताया है

Sunday, March 8, 2009

खामोशी गुफ्तगू है, बे जुबानी है जुबां मेरी

'बका की फिकर कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बरबादियों के मशवरे है आसमानों में
जरा देख इसको जो कुछ हो रहा है होने वाला है
धरा क्या है भला अहदे कुहन की दस्तानों में
यह खामोशी कहा तक ?लज्जते फरियाद पैदा कर
जमीं पर तू हो और तिरी सदा हो आसमानों में
न समझेगा तो मिट जावेगा ऐ दुनिया के अन्नदाता
तिरी तो दास्ताँ तक भी न होगी दस्तानों में
.....................................
मूल रूप से 'बेचारा जमींदार '
से अनुवादित चोधरी छोटू राम दवारा लिखित
.........साभार ..........

Wednesday, March 4, 2009

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य ..........(भाग ५)

जनाब नारायाण दास 'तालिब' पानीपत के महान कवि के रूप में सम्मानित रहे है इनका
जन्म पानीपत में १८ मार्च १९०६ में हुआ आप में काव्य जन्म जात था
''जीने के लिए जीने वालो को जी से गुजरना पड़ता है
मर मर के जीना होता है हर साँस पे मरना होता है ''
............................................................
भारत के परसिद्ध शायर हाली के ही परिवार में ७ जून १९१४ को उर्दू के एक और उच्च कोटि के
साहित्यकार ने जन्म लिया जिनका नाम ख्वाजा अहमद अब्बास था जो बाद में के .ऐ .अब्बास के नाम से फिल्मो और अंतररास्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए
ख्वाजा अहमद अब्बास के नाना शमाल मगरीबी हाली साहब के सपुत्र थे ख्वाजा अब्बास
ने पानीपत के मुस्लिम हाई स्कुल से मिडल तक प्राप्त की बाद में अलीगढ से उच्च शिक्षा
प्राप्त की ख्वाजा साहब की पहली कहानी 'अबाबील ' जो उन्होंने १९३६ में लिखी थी वह अब
तक संसार की विभिन्न भाषाओँ में प्रकाशित हो चुकी है रूस सरकार ने आपको 'लेलिन
शान्ति ' से सम्मानित किया हरियाणा सरकार ने ३१ मार्च १९६८ को आपको सम्मानित
किया .............

Monday, March 2, 2009

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य ...................(भाग ४)

उर्दू साहित्य में हरियाणा के कवियों में अनुपचंद'आफताब ' पानीपती का अपना स्थान है उन्होंने उर्दू काव्य को परम और श्रंगार की संकरी गलियों से निकल कर जीवन जाग्रति और बलिदान के राजपथ पर ला खडा किया हरियाणा सरकार ने उन्हें 'राज्य कवि 'के सम्मानित पदसे आभूषित किया उनका जन्म पानीपत के एक सम्पन परिवार में १८९७ को हुआ और ८ फरवरी १९६८ को उनका देहावसान हो गया
उनका लिखा काव्य .....................
"हम गर्दिशो दोरा को बल अपना दिखा देंगे
मशरिक का सिरा लेकर मगरिब से मिला देंगे
शेरो की तरह हम भी गुराएँगे दुनिया में
सीनों में वतन के जज्बात जगा देंगे
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Saturday, February 28, 2009

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य ....(भाग ३)

पानीपत के मोलाना वहीदुद्दीन 'सलीम 'उर्दू के प्रसिद्ध कवि आलोचक ,पत्रकार एवं भाषा शास्त्री रहे है उनका जन्म १८६७ ई ० में हुआ इनके पिता बू अली कलंदर के मुजाविर थे इन्होने 'अलीगढ गजट ' लखनुव से लखनुव गजट और लाहोर से 'जमींदार 'पत्र का सम्पादन किया १९२८ को मोलाना 'सलीम ' का देहांत हुआ
पंडित बिशम्बर दास 'गरमा' ने अपने काव्य एवं नाटको द्वारा उर्दू साहित्य की सेवा की है इनका जन्म १८७१ में पानीपत में हुआ 'गरमा 'जी की कुल परम्परा साहित्यकारों की रही है इनके दादा पंडित मुरलीधर 'ख्याल 'हिन्दी में दोहे करते थे तथा इनके पिता पंडित गनपत सिंह हिन्दी में कविता करते थे पंडित 'गरमा' ख्वाजा जफ़र हसन के शिष्य थे इनके शेरो में सूफियाना अंदाज होता था
तू मेहर है गर तो नूर हूँ मै
तू फूल है तो उसकी खुशबु मै
गर तू है जबां तो मै हू बयाँ
तू गेर नही मै गेर नही
जनाब शगर चंदर साहिब रोशन पानीपत एक उम्दा साहित्यकार थे जिन्होंने उर्दू की उल्लेखनीय सेवा की कवि सम्मेलनों में तो मानों 'रोशन ' साहिब का एक छत्र राज रहा
है आपका जन्म ११ मार्च १८९६ और देहांत ५ नवम्बर १९५८ को हुआ उनके काव्य संग्रह के
मुख्य प्रष्ट पर एक शेर छपा था ॥
फना के बाद भी दुनिया न भूलेगी तुझे 'रोशन '
तेरा जिक्र जन्नुन होता रहेगा कु -बे-कु बरसों ॥










Sunday, February 22, 2009

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य (भाग २ ).........

ख्वाजा जफ़र हसन 'जाफ़र'का जन्म १८३७ ई
० को पानीपत में हुआ ये हाली के ही समकालीन थे जाफ़र साहब को अरबी फारसी और उर्दू का पूर्ण ज्ञान था उर्दू के अलावा ये फारसी में भी शेर कहते थे वे 'मर्सिये 'लिखने एवं पढने में पारंगत थे उन्होंने तथाकतित शायरों को भी आड़े हाथों लिया है
''बहुत मुश्किल है फने शेरो-गोई
कि है डरकर इसको मर्दे कालिम
जिसे देखो वह शायर बन रहा है
ज्यादा इसमें अर्जल और आसफ़िल
तमीज अच्छे कि उनको न बुरे कि
जुहल को जानते है माहे कमील''

Sunday, February 15, 2009

हरियाणा का सूफी एव उर्दू साहित्य

"चलती रही बला से तब्सुब की अंधिया
उर्दू का यह चिराग बुजाया न जायगा "
हरियाणा प्रदेश की एअतिहसिक भूमि 'उर्दू भाषा के अहले कदम पेदा करने में किसी अन्य भू भाग से पीछे नही रहा है .हरियाणा की भूमि उर्दू सहित्य कारो के लिए कर्म भूमि रहा है उर्दू कलमकारों के योगदान से उर्दू साहित्य मालामाल हो गया है हरियाणा की पावन भूमि पर पानीपत को ही उर्दू साहित्य का केन्द्र मानाजा सकता है ।
तालिब पानीपती ने कहाहै .........
अर्जे शेर-ओ -सुखन है पानीपत ,
शायरी का चमन है पानीपत ,
इस पे जितना गरुर हो कम है ,
मेरा अपना वतन है पानीपत ,
पानीपत के संबंद में 'हाफिज 'ने कहा है ...........................
निशाने जिदगी पाता हु पानीपत की राहो में '
ये मंजिल मंजिले मकसूद है मेरी निगाहों में
हरियाणा ही वह भूमि है जिस स्थान पर ''मसीहाई पानीपती ''ने फारसी रामायण को काव्य का रूप दिया था उतर भारत के सर्वप्रथम उर्दू साहित्यकार 'मुम्ह्द अफजल 'का संबंद हरियाणा (पानीपत)से ही था उनका देहांत (१०३५ हिजरी)सन १६२६ई० में हुआ
हाफिज मम्हुद खान शिरानी ने अपनी किताब 'पंजाब में उर्दू 'में लिखा है की मुहमद अफजल पानीपत के निवासी थे वे पेशे से अध्यापक थे उच्च कोटि के विद्वान गद्य व् पद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु एक सुन्दरी पर मोहित हो गए जिस कारन अनेक कष्ट भी सहे
दुवाज दह्माया उनका एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमे उन्होंने विरह व्यथा का उल्लेख किया है ................
''अरी यह इश्क या क्या बला है
की जिसकी आग में सब जग जला है ''
इसके अलावा भी इस दौर में अनेक साहित्यकारों का नाम उल्लेखनीय है इनमे झज्झर के महबूब आलम ,अब्दुल वासी हांसी ,मीर जफ़र जत्ल्ली ,सयद अटल नारनौल के नाम है
'मीर जाफर जत्ल्ली 'उर्दू साहित्य के हास्य व्यंग्य के प्रथम कवि थे उनका जन्म १६५९ ई ० निधन १७१३ ई ० में हुआ
मास्टर रामचंदर को उर्दू का पहला निबंध लेखक माना जाता है मास्टर जी का जन्म १८२१ ई ० में पानीपत में हुआ निधन १८८० ई ० में बताया जाता है उन्होंने 'मुहिब्बे वतन और फवैदुल -नाजरीन 'नामक दूर पत्रिकाओ का भी संपादन किया
मीर महंदी 'मजरुह 'का भी संबंद हरियाणा से रहा है यह मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे इनके पिता का नाम मीर हुसैन था इनका जन्म १८३३ ई ० और निधन १९०२ ई ० में हुआ उनको छोटी बाहरे पसंद थी उन्ही में उन्होंने अच्छा लिखा ॥
''श्ग्ल्ये उल्फत को जो एहबाब बुरा कहते है
कुछ समझ में नही आता की ये क्या कहते है ''
उर्दू साहित्य में मोलाना अल्ताफ हुसैन हाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारन उन्हें स्थाई ख्याति प्राप्त हुई है इनका जन्म १८३७ ई ० में पानीपत में ख्वाजा एजिद -बक्श के घर में हुआ ये मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे . गद्य लेखन एव समालोचक की द्रष्टि से भी उर्दू साहित्य में इनका स्थान ऊपर है । उनकी रचनाये अब भी साहित्यकारों के लिए आदर्श बनी हुई है
''हर बोल तेरा दिल से टकरा गुजरता है
कुछ रंगे क्या 'हाली' है सबसे जुदा तेरा ''
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हरयाणवी सांग की परम्परा

हरयाने की कहानी सुन लो दोसो साल की
कई किसम की हवा चलगी नई चाल की टेक
एक डोल्किया एक सारंगिया अड्डा रह थे
एक जनाना एक मरदाना दो खड़े रह थे
पंद्रह सोलह कुंगर जड़का खड़े रह थे
सब त पहलम यो काम किशनलाल का १
एक सो सत्तर साल बाद फेर दीपचंद होगया
साजन्दे दो बढ़ा दिए घोडे का नाच बाँध होगया
नीचे काला दामन उप्पर लाल कंद होगया
चमोले ने भूल गे न्यू नयारा छुंद होगया
तीन काफ्ये गाये या बरनी रंगत हाल की २
हर देवा ,दुल्लिचंद चतरू एक बाजे नाइ
घागरी तै उनने भी पहरी अंगी छुड़वाई
तीन काफ्ये छोड़ एकहरी रागनी गाई
उन तै पछेया लखमी चंद ने डोली बर्सेई
बाता उपर कलम तोड़ गया आज काल की ३
मांगाराम पांची आला मन में करे विचार
घाघरी के मारे मर गऐ अनपढ़ ग्वार
सिस पे दुपट्टा जम्फर पाया में सलवार
इब ते आग देख लियओ चोथा चलएया त्योहार
जिब छोरोया परहेया घाघरी किसी बात कमाल की ४
कवि -प् माँगा राम पांची वाला .

Friday, February 13, 2009

सब भाइयों को लाइव हरयाणा की और से राम राम.