Sunday, February 15, 2009

हरयाणवी सांग की परम्परा

हरयाने की कहानी सुन लो दोसो साल की
कई किसम की हवा चलगी नई चाल की टेक
एक डोल्किया एक सारंगिया अड्डा रह थे
एक जनाना एक मरदाना दो खड़े रह थे
पंद्रह सोलह कुंगर जड़का खड़े रह थे
सब त पहलम यो काम किशनलाल का १
एक सो सत्तर साल बाद फेर दीपचंद होगया
साजन्दे दो बढ़ा दिए घोडे का नाच बाँध होगया
नीचे काला दामन उप्पर लाल कंद होगया
चमोले ने भूल गे न्यू नयारा छुंद होगया
तीन काफ्ये गाये या बरनी रंगत हाल की २
हर देवा ,दुल्लिचंद चतरू एक बाजे नाइ
घागरी तै उनने भी पहरी अंगी छुड़वाई
तीन काफ्ये छोड़ एकहरी रागनी गाई
उन तै पछेया लखमी चंद ने डोली बर्सेई
बाता उपर कलम तोड़ गया आज काल की ३
मांगाराम पांची आला मन में करे विचार
घाघरी के मारे मर गऐ अनपढ़ ग्वार
सिस पे दुपट्टा जम्फर पाया में सलवार
इब ते आग देख लियओ चोथा चलएया त्योहार
जिब छोरोया परहेया घाघरी किसी बात कमाल की ४
कवि -प् माँगा राम पांची वाला .

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