हरयाने की कहानी सुन लो दोसो साल की
कई किसम की हवा चलगी नई चाल की टेक
एक डोल्किया एक सारंगिया अड्डा रह थे
एक जनाना एक मरदाना दो खड़े रह थे
पंद्रह सोलह कुंगर जड़का खड़े रह थे
सब त पहलम यो काम किशनलाल का १
एक सो सत्तर साल बाद फेर दीपचंद होगया
साजन्दे दो बढ़ा दिए घोडे का नाच बाँध होगया
नीचे काला दामन उप्पर लाल कंद होगया
चमोले ने भूल गे न्यू नयारा छुंद होगया
तीन काफ्ये गाये या बरनी रंगत हाल की २
हर देवा ,दुल्लिचंद चतरू एक बाजे नाइ
घागरी तै उनने भी पहरी अंगी छुड़वाई
तीन काफ्ये छोड़ एकहरी रागनी गाई
उन तै पछेया लखमी चंद ने डोली बर्सेई
बाता उपर कलम तोड़ गया आज काल की ३
मांगाराम पांची आला मन में करे विचार
घाघरी के मारे मर गऐ अनपढ़ ग्वार
सिस पे दुपट्टा जम्फर पाया में सलवार
इब ते आग देख लियओ चोथा चलएया त्योहार
जिब छोरोया परहेया घाघरी किसी बात कमाल की ४
कवि -प् माँगा राम पांची वाला .
Sunday, February 15, 2009
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