Sunday, February 15, 2009

हरियाणा का सूफी एव उर्दू साहित्य

"चलती रही बला से तब्सुब की अंधिया
उर्दू का यह चिराग बुजाया न जायगा "
हरियाणा प्रदेश की एअतिहसिक भूमि 'उर्दू भाषा के अहले कदम पेदा करने में किसी अन्य भू भाग से पीछे नही रहा है .हरियाणा की भूमि उर्दू सहित्य कारो के लिए कर्म भूमि रहा है उर्दू कलमकारों के योगदान से उर्दू साहित्य मालामाल हो गया है हरियाणा की पावन भूमि पर पानीपत को ही उर्दू साहित्य का केन्द्र मानाजा सकता है ।
तालिब पानीपती ने कहाहै .........
अर्जे शेर-ओ -सुखन है पानीपत ,
शायरी का चमन है पानीपत ,
इस पे जितना गरुर हो कम है ,
मेरा अपना वतन है पानीपत ,
पानीपत के संबंद में 'हाफिज 'ने कहा है ...........................
निशाने जिदगी पाता हु पानीपत की राहो में '
ये मंजिल मंजिले मकसूद है मेरी निगाहों में
हरियाणा ही वह भूमि है जिस स्थान पर ''मसीहाई पानीपती ''ने फारसी रामायण को काव्य का रूप दिया था उतर भारत के सर्वप्रथम उर्दू साहित्यकार 'मुम्ह्द अफजल 'का संबंद हरियाणा (पानीपत)से ही था उनका देहांत (१०३५ हिजरी)सन १६२६ई० में हुआ
हाफिज मम्हुद खान शिरानी ने अपनी किताब 'पंजाब में उर्दू 'में लिखा है की मुहमद अफजल पानीपत के निवासी थे वे पेशे से अध्यापक थे उच्च कोटि के विद्वान गद्य व् पद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु एक सुन्दरी पर मोहित हो गए जिस कारन अनेक कष्ट भी सहे
दुवाज दह्माया उनका एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमे उन्होंने विरह व्यथा का उल्लेख किया है ................
''अरी यह इश्क या क्या बला है
की जिसकी आग में सब जग जला है ''
इसके अलावा भी इस दौर में अनेक साहित्यकारों का नाम उल्लेखनीय है इनमे झज्झर के महबूब आलम ,अब्दुल वासी हांसी ,मीर जफ़र जत्ल्ली ,सयद अटल नारनौल के नाम है
'मीर जाफर जत्ल्ली 'उर्दू साहित्य के हास्य व्यंग्य के प्रथम कवि थे उनका जन्म १६५९ ई ० निधन १७१३ ई ० में हुआ
मास्टर रामचंदर को उर्दू का पहला निबंध लेखक माना जाता है मास्टर जी का जन्म १८२१ ई ० में पानीपत में हुआ निधन १८८० ई ० में बताया जाता है उन्होंने 'मुहिब्बे वतन और फवैदुल -नाजरीन 'नामक दूर पत्रिकाओ का भी संपादन किया
मीर महंदी 'मजरुह 'का भी संबंद हरियाणा से रहा है यह मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे इनके पिता का नाम मीर हुसैन था इनका जन्म १८३३ ई ० और निधन १९०२ ई ० में हुआ उनको छोटी बाहरे पसंद थी उन्ही में उन्होंने अच्छा लिखा ॥
''श्ग्ल्ये उल्फत को जो एहबाब बुरा कहते है
कुछ समझ में नही आता की ये क्या कहते है ''
उर्दू साहित्य में मोलाना अल्ताफ हुसैन हाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारन उन्हें स्थाई ख्याति प्राप्त हुई है इनका जन्म १८३७ ई ० में पानीपत में ख्वाजा एजिद -बक्श के घर में हुआ ये मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे . गद्य लेखन एव समालोचक की द्रष्टि से भी उर्दू साहित्य में इनका स्थान ऊपर है । उनकी रचनाये अब भी साहित्यकारों के लिए आदर्श बनी हुई है
''हर बोल तेरा दिल से टकरा गुजरता है
कुछ रंगे क्या 'हाली' है सबसे जुदा तेरा ''
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हरयाणवी सांग की परम्परा

हरयाने की कहानी सुन लो दोसो साल की
कई किसम की हवा चलगी नई चाल की टेक
एक डोल्किया एक सारंगिया अड्डा रह थे
एक जनाना एक मरदाना दो खड़े रह थे
पंद्रह सोलह कुंगर जड़का खड़े रह थे
सब त पहलम यो काम किशनलाल का १
एक सो सत्तर साल बाद फेर दीपचंद होगया
साजन्दे दो बढ़ा दिए घोडे का नाच बाँध होगया
नीचे काला दामन उप्पर लाल कंद होगया
चमोले ने भूल गे न्यू नयारा छुंद होगया
तीन काफ्ये गाये या बरनी रंगत हाल की २
हर देवा ,दुल्लिचंद चतरू एक बाजे नाइ
घागरी तै उनने भी पहरी अंगी छुड़वाई
तीन काफ्ये छोड़ एकहरी रागनी गाई
उन तै पछेया लखमी चंद ने डोली बर्सेई
बाता उपर कलम तोड़ गया आज काल की ३
मांगाराम पांची आला मन में करे विचार
घाघरी के मारे मर गऐ अनपढ़ ग्वार
सिस पे दुपट्टा जम्फर पाया में सलवार
इब ते आग देख लियओ चोथा चलएया त्योहार
जिब छोरोया परहेया घाघरी किसी बात कमाल की ४
कवि -प् माँगा राम पांची वाला .