सन १८८४-८५ में सर आर .सी .टेम्पल की "दी लीजेंड्स आफ पंजाब "नामक किताब में बंशीलाल द्वारा किए जा रहे सांग का प्रसंग आया है यह सांग गोपी चन्द के किस्से पर
अम्बाला जिले में हो रहा था
'करपा करो जगदीश ,मात मेरी कंठ में बासा
छन्द ज्ञान शुरू करो आनके देख लोग तमाशा
गोपी चन्द का सांग कहना की दिल को लगरी आशा
कहते बंशीलाल मात मेरी पूर्ण कीजे आशा
हरियाणवी लोक साहित्य के प्रमुख विद्वान "डॉ० शंकर लाल यादव "ने अपने लेख 'हरियाणा
की नाट्य परम्परा 'में सांग बारे में लिखा "आधुनिक हरियाणवी सांग का इतिहास खोजते समय
प० दीपचंद ऐसे कलाकार मिलते है जिन्हें सांग का युग प्रवर्तक खा जा सकता है लेकिन सांग
का चलन इनसे बहुत पहले से ही था पुराने समय में भाट जाती के लोग पीढी दर पीढी गायन
में पारंगत थे गावं के बसने या उजड़ने का सारा ब्यौरा वह अपनी गायन शेली में सुनाते थे
यह भी कहा जा सकता है की भजन मंडलियों से ही सांग का स्वरूप निकला है क्योंकि प ० दीपचंद से पहले रामलाल खटिक और प ० नेतराम प्रसिद्ध साँगी थे परन्तु दोनों आरम्भ में भजनी थे सांग के शुरूआती दोर में एकतारा, ढोलक और खड़ताल ही वाद्य यंत्रो के तोर पर प्रयोग होते थे
Wednesday, March 11, 2009
हरियाणा का लोक नाट्य सांग(फोक ऑपेरा )
हरियाणा की लोक नाट्य कला के बारे में विचार करते ही हमारा ध्यान सांग पर चला जाता है इस नाट्य कला का इतिहास बहुत जिज्ञासा मूलक है हरियाणा या इसके आसपास के इलाको में सांग की शुरुआत कब हुई इस बारे में कहना मुश्किल है ,परन्तु इतना कहा जा सकता है कि देवताओं में इंदर कि सभा में भी स्वांग (सांग) खेला जाता
था हरियाणा में सांग प्राचीन कल से ही प्रचलित है " नाट्य शास्त्र " ही पंचम वेद कहलाया है
हरियाणा में सम्राट हर्श्वदन के समय लोक नाट्य कला अपने चरम पर था उनके
दरबार में नाटक मण्डली थी १६वि ० शती में हरियाणा में रास लीला और रामलीला
का प्रचार -प्रसार था कुछ समय बाद सांग में अन्य किस्से भी शामिल होने लगे
था हरियाणा में सांग प्राचीन कल से ही प्रचलित है " नाट्य शास्त्र " ही पंचम वेद कहलाया है
हरियाणा में सम्राट हर्श्वदन के समय लोक नाट्य कला अपने चरम पर था उनके
दरबार में नाटक मण्डली थी १६वि ० शती में हरियाणा में रास लीला और रामलीला
का प्रचार -प्रसार था कुछ समय बाद सांग में अन्य किस्से भी शामिल होने लगे
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