Sunday, February 22, 2009

हरियाणा का सूफी एवं उर्दू साहित्य (भाग २ ).........

ख्वाजा जफ़र हसन 'जाफ़र'का जन्म १८३७ ई
० को पानीपत में हुआ ये हाली के ही समकालीन थे जाफ़र साहब को अरबी फारसी और उर्दू का पूर्ण ज्ञान था उर्दू के अलावा ये फारसी में भी शेर कहते थे वे 'मर्सिये 'लिखने एवं पढने में पारंगत थे उन्होंने तथाकतित शायरों को भी आड़े हाथों लिया है
''बहुत मुश्किल है फने शेरो-गोई
कि है डरकर इसको मर्दे कालिम
जिसे देखो वह शायर बन रहा है
ज्यादा इसमें अर्जल और आसफ़िल
तमीज अच्छे कि उनको न बुरे कि
जुहल को जानते है माहे कमील''

1 comment:

  1. माननीय महोदय
    आपके ब्लाग पर हरियाणा के साहित्य पर विशेष रूप से उर्दू साहित्य एवं सूफी पर आपके विचार जानने का सौभाग्य मिला। अपनी रचनाओं के प्रकाशन के लिए मेरे ब्लाग पर आएं आपको पत्रिकाओं की समीखा के साथ साथ उनके पते भी मिल जाएंगे।
    अखिलेश शुक्ल
    संपादक कथा चक्र
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