Sunday, March 29, 2009

हरियाणा का लोक नाट्य ....सांग(३)

सांग में अनेक बदलाव भी दीपचंद युग में आए मंच के उपकरणों में भी कई परिवर्तन हुए पहले सांगी खड़े -खड़े काम करते थे लेकिन अब मूढा व् चोंकी लेकर बठने लगे नायक मूढे पर बैठता जबकि बाकि कलाकार निचे बैठते स्त्री का अभिनय आदमी स्त्री वेश में करता साजो में एकतारे का स्थान सारंगी ने ले लिया तथा नगाडे का भी प्रयोग होने लगा दीपचंद युग में सांग अपने चरमोत्कर्ष पर था लेकिन अगर हम इस कला के एक सांगी का जीकर न करे तो यह सांग की गाथा अधूरी मानी जायगी ये थे प्रसिद्ध सांगी प० लखमी चंद जिन्होंने सांग को एक नई दिशा प्रदान की जिनके बनाये आज भी सर्वाधिक प्रचलित है प० लखमी चन्द 'मान सिंह 'बसोदी वाले से बहुत प्रभावित थे जो भजन गाते थे और अंधे थे प० लखमी चंद मान सिंह को ही अपना गुरु मानते थे इसी लिए उनके बनाये सांगो में भी गुरु भक्ति झलकती है वे सांग के आरम्भ में कहते है ...
'मन्य सुमर लिए जगदीश
मानसिंह सतगुरु मिले
गहूँ चरण नवा शीश
प० लखमी चंद ने सांग को एक नया रूप प्रदान किया वे अदभुत कला के प्रतिभा संपन सांगी थे उनके सांगो में प्रेम और श्रंगार का योग देखने को मिलता है
नोटंकी सांग में ............
"म आया था आडे ठरण खातर,
मानस मारनी बेरण खातर ,
नोटंकी के पहरण खातर हार बना बडे जोर का "

2 comments:

  1. bhai mazaaaa gaya
    likte vraho................
    ragniyon ke bare mein bhi

    ReplyDelete
  2. AAP LAKHMI CHAND KE BAARE KUCH AUR LIKHIYE PLZ MAI LAKHMI CHAND JI KE JEEVAN KE BAARE ME JANNA CHAHTI HU.

    ReplyDelete