प० लखमी चन्द के समय में सांग कला के रंग मंचीय पहलु में भी परिवर्तन आया वाद्यायंत्रो में हारमोनियम शामिल हो गया मंच पर छ : तख्त होने लगे ,शामियाना लगने लगा तख्तो पर जाजम और उस पर चांदनी (चादर )बिछाई जाने लगी नायक के बैठने के लिए कुर्सी का प्रयोग होने लगा सांग में काव्य या रागनी में सवाल जवाब आते है और बीच-बीच में सूत्रधार संवाद कहता है
हरियाणवी सांग सामाजिक धरोहर है इस हरियाणवी लोक नाट्य संगीत न्रत्य संवाद और अभिनय की अनिवार्यता है इन सांगो में रंग मंच का कोई आडम्बर नही होता ,प्रदर्शन खुले में होता है और सांग रात -रात भर चलते है सांगो ने हरियाणा के जन -मानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है सांगो का लोगो के मन पर असर होता था सांगो की लोकपिर्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है की हरियाणा में अनेक स्थानों में स्कूल,मन्दिर, कुए ,धर्मशाला भी सांगो द्वारा इकठ्टे किए गये चंदे से बनाये गये है
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Sunday, May 17, 2009
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